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मैंने लिखी हुई कविताएं !!

 _ जान्हवी कांबळे ...

 १.मेरी माँ  .............

माँ तू ही तू  
भू को ढके अम्बर 
सबसे न्यारी ।
मिलती है पूर्ण ही
जन्नत मुझे ।।
सपनो सी है
दुनिया यह सारी
खुला आकाश।
खगों की गूंज 
नहीं है अब बात 
कैसे बचेगी ??
कलयुग का 
आतंक चौसरफा
मन व्याकुल ।
अश्रु भरे है
घटा फटने वाली
व्याकुल आँखे ।।
जींद है तेरी 
नहीं मिलती मुझे तो 
पेड़ है सूखे ।
जिंदगी भारी
उजड़ा चमन है
ख़तम है ख्वाब ।।
बटी नी:शब्द 
बाबुल से विदाई 
सुना वातास।
हौसला साथ
टिमटिमाते तारे  
माँ की लाडली बेटी !! 



२. मेरे पापा................ 


 प्यार का सागर ले आते ,
 चाहे कुछ न कह पाते
बिन बोले ही समझ जाते
दुःख के हर कोने में
खड़ा उनको पहले से पाया
छोटी सी उंगली पकड़कर
चलना उन्होंने सीखाया
जीवन के हर पहलु को
अपने अनुभव से बताया
हर उलझन को उन्होंने
अपना दुःख समझ सुलझाया
दूर रहकर भी हमेशा
प्यार उन्होंने हम पर बरसाया
एक छोटी सी आहट से
मेरा साया पहचाना,
मेरी हर सिसकियों में
अपनी आँखों को भिगोया
आशिर्वाद उनका हमेशा हमने पाया
हर ख़ुशी को मेरी पहले उन्होंने जाना
असमंजस के पलों में,
अपना विश्वाश दिलाया
उनके इस विश्वास को
अपना आत्म विश्वास बनाया
ऎसा है मेरे पापा का प्यार 
 मैने मेरे पापा के प्यार के आलावा
बड़ा कोई प्यार न पाया 
पापा की लाडली बेटी !!

३. शिक्षा  ..............

अंधकार को दूर कर जो प्रकाश फैला दे।
बुझी हुई आश मे विश्वास जो जगा दे।।

जब लगे नामुमकिन कोई भी चीज ,उसे मुमकिन बनाने की राह जो दिखा दे वो है शिक्षा।।

हो जो कोई असभ्य, उसे सभ्यता का पाठ पढ़ा दे।
अज्ञानी के मन में, जो ज्ञान का दीप जला दे।।

हर दर्द की दवा जो बता दे.. वो है शिक्षा।
वस्तु की सही उपयोगिता जो समझाए।।

दुर्गम मार्ग को सरल जो बनाए।
चकाचौंध और वास्तविकता में अन्तर जो दिखाए।।

जो ना होगा शिक्षित समाज हमारा।
मुश्किल हो जाएगा सबका गुजारा।।

इंसानियत और पशुता के बीच का अन्तर है शिक्षा।
शाति, सुकून और खुशियों का जन्तर है शिक्षा।।

भेदभाव, छुआछुत और अंधविश्वास दुर भगाने का मन्तर है शिक्षा। जहाँ भी जली शिक्षा की चिंगारी, नकारात्मकता वहा से हारी।।

जिस समाज में हों शिक्षित सभी नर-नारी।
सफलता-समृद्धि खुद बने उनके पुजारी।।

इसलिए आओ शिक्षा का महत्व समझे हम।
आओ पूरे मानव समाज को शिक्षित करें हम !!

४.सफर में धूप तो बहुत होगी ..........


सफर में धूप तो बहुत होगी तप सको तो चलो,
भीड़ तो बहुत होगी नई राह बना सको तो चलो।

माना कि मंजिल दूर है एक कदम बढ़ा सको तो चलो,
मुश्किल होगा सफर, भरोसा है खुद पर तो चलो।

हर पल हर दिन रंग बदल रही जिंदगी,
तुम अपना कोई नया रंग बना सको तो चलो।

राह में साथ नहीं मिलेगा अकेले चल सको तो चलो,
जिंदगी के कुछ मीठे लम्हे बुन सको तो चलो।

महफूज रास्तों की तलाश छोड़ दो धूप में तप सको तो चलो,छोटी-छोटी खुशियों में जिंदगी ढूंढ सको तो चलो।

यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें,
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो।

तुम ढूंढ रहे हो अंधेरो में रोशनी ,खुद रोशन कर सको तो चलो,कहा रोक पायेगा रास्ता कोई जुनून बचा है तो चलो।

जलाकर खुद को रोशनी फैला सको तो चलो,
गम सह कर खुशियां बांट सको तो चलो।

खुद पर हंसकर दूसरों को हंसा सको तो चलो,
दूसरों को बदलने की चाह छोड़ कर, खुद बदल सको तो चलो।


अगर आपको मेरी यह सब कविताये अच्छी लगे तो कमेंट बॉक्स में  , अपकी राय लिखिये !! 

~जान्हवी कांबळे


Comments

  1. Wow janhavi !! You wrote a such beautiful poem , I love to read keep writing more poem !!

    ReplyDelete
  2. Janhavi really loved how u express ur feelings through poem !! I like ur all poems very much, keep writing more poems !! 👌👌👍😊

    ReplyDelete
  3. Very beautiful and nice poem written 👏👏👌👌

    ReplyDelete

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